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ठगिनी और व्यापारी भाग-5

                          भाग- 5

कछुए के बताए हुए रास्ते पर यशवर्धन आगे बढ़ रहा था. वे दोनों काफी दूर तक आ गए थे. अब सूरज डूबने ही वाला था. कछुए और व्यापारी पुत्र की बेचेनी बढ़नी लगी थी क्योंकि उन्होने अब तक जंगल को पार नहीं किया था और जिस जगह वो थे वहां शेर, बाघ और चीता रह रहे थे. यशवर्धन कछुए के साथ बातें करते हुए आगे बढ़ रहा था इस दौरान उसे किसी चीते की आवाज सुनाई दी. वह डर के मारे सिहर सा गया. उसके पैर मानो जमीं से चिपक गए. डर के मारे पसीने से उसका बुरा हाल था. कुछ ही पल में वो चीता उसकी आँखों के सामने था. व्यपारी पुत्र के डर के मारे बुरा हाल था. वो चीता व्यापारी पुत्र को एक खाने के स्त्रोत के रूप में देख रहा था. कछुए ने व्यापारी पुत्र से जोर से कहा- दोस्त, अब जो  कुछ भी  मैं बोलूं तुम वैसा करो.

यशवर्धन- क्या करूँ. मित्र?

कछुआ- तुम जल्दी से मुझे इस चीते की तरफ फैंक दो. और दौड़कर उस पेड़ पर चढ़ जाओ..

यश- नहीं मैं तुम्हे इसके सामने नहीं फैक सकता. ये तुम्हे खा जाएगा.

कछुआ- मित्र यह वक्त बहस करने का नहीं है. वो तुम पर कभी भी हमला कर सकता है. तुम जल्दी से ये कदम उठाओ वरना जान से मारे जाओगे.

यश- पर मैं तुम्हे कैसे इसके सामने फैंक सकता हूँ दोस्त?

कछुआ- अरे तुम इसकी चिंता मत करो.. तुम फैंक दो दोस्त देखो वो आ रहा है.

इधर चीता यशवर्धन की तरफ आगे बढ़ रहा था. यशवर्धन का डर के मारे बुरा हाल था. उसने पहले पेड़ की तरफ देखा और फिर कछुए की तरफ. वह असंजस की स्थिति में था. इधर वो चीता दौड़ता हुआ उसकी तरफ जैसे ही बढ़ा कछुए के कहे अनुसार यशवर्धन ने कछुए को उस चीते की तरफ फैंक दिया और खुद दौड़कर उस पेड़ पर चढ़ गया. वो चीता दौड़ता हुआ कछुए की तरफ बढ़ा. वह जैसे ही कछुए के मुहं को खाने लगा उसने अपने मुहं और पेरों को अपने खोल के अन्दर सिकूंड लिया. वह चीता उसे खाना चाह रहा था लेकिन कछुए का खोल मजबूत होने के कारण वह उसे खा ना सका. उसने उसे  पलटने की भी कोशिश की लेकिन वह उसे पलटने में नाकामयाब हो गया. कुछ देर कड़ी मस्कत करने के बावजूद भी वह उसे खा ना सका इस कारण निराश होकर वह  वहां से चला गया. व्यापारी पुत्र उस पेड़ से नीचे उतर आया उसने कछुए को आवाज दी. उसने कछुए को उठा लिया और प्यार से चूमा. उसने उसे रोते हुए कहा- दोस्त आज तुम नहीं होते तो मैं तो मारा जाता.
कछुए ने मुस्कुराते हुए कहा- अच्छा दोस्त, अगर तुम इस जंगल में नहीं आते तो मैं भी उस तालाब में भूख और प्यास के कारण मारा जाता.
यश वर्धन ने मुस्कुराते हुए कहा- यानी तुम मेरी जान बचाने का श्रेय नहीं लोगे?
कछुए- कैसे ले लूं? वैसे भी मित्र शब्द का अर्थ ही तो साथ देने वाला होता है. चलो अब चलो जल्दी वराना कोई और हमारा यार दोस्त आ जाएगा.
कछुए के इतना कहते ही दोनों दोस्त ठहाके मारकर हंसने लगे. वे घने पेड़ों के बीच से होते हुए जा रहे थे लेकिन शीघ्र ही अँधेरा छा गया इस कारण उन्होंने एक बरगद के पेड़ के ऊपर विश्राम लेना मुनासिब समझा. अगले दिन वे जल्दी उठ गए और पूरे दिन भर बातें करते हुए चलते रहे. शाम तक वे उस झील किनारे तक पहुँच गए जहाँ उस कछुए को ठहरना था. चारों और हरियाली छाई हुई थी. बारिश भी खूब हो रखी थी. वो प्रदेश बहुत ही समृद्ध लग रहा था. झील किनारे सुन्दर कमल के फूल खिले हुए थे. व्यापारी पुत्र ने उदास होकर कछुए को नीचे छोड़ते हुए कहा- चलो मित्र अब तुम यहाँ रह सकते हो मुझे अब आगे जाना होगा.
कछुए ने भी उदास होकर कहा- ये तो मुझे पता था दोस्त की हम अब अलग  होंगे लेकिन मैं तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ.
यश- क्या?
कछुए- उसके लिए तुम्हे थोडा इन्तजार करना होगा. तुम थोड़ी देर विश्राम करो. इतने में मैं तुम्हारे लिए कुछ लाता हूँ.
यश- ठीक है.
फिर वो कछुआ उस झील के अन्दर चला जाता है. यशवर्धन जैसे ही कुछ देर के लिए विश्राम करता है वह कछुआ झील के अन्दर से बाहर आता है. उसके मुहं में कुछ सफ़ेद  चमकदार से थे. जैसे ही व्यापारी पुत्र उस कछुए के पास जाता है उसने अपने मुहं को खोलकर बाहर पांच मोती उड़ेल दिए. व्यापारी पुत्र ने जैसे ही आश्चर्य चकित होकर उन मोतियों की तरफ देखा तो कछुए ने कहा- क्या हुआ दोस्त? ये मोती हैं. तुम्हारी उन चार सोने की मोहरों से भी ज्यादा कीमती. तुम इनकी सहायता से व्यापार कर सकोगे. लेकिन..

यश- लेकिन क्या?

कछुआ- लेकिन तुम्हे एक बात का ध्यान रखना होगा. यहाँ से पांच किलोमीटर दूर एक गाँव हैं. वह गाँव सभ्य जनों का है लेकिन उसी गाँव में एक ठगों का घर है. अब वो घर गाँव में घुसने के बाद आता है या फिर निकलने के बाद इसका मुझे मालूम नहीं लेकिन इतना ध्यान रखना वो ठग किसी भी हद तक जा सकते हैं. वो तुमसे ये सभी मोती छीन सकते हैं इस लिए तुम्हे इन्हें किसी भी तरह से छुपाकर रखना होगा..
यश- अच्छा.. लेकिन कैसे?
कछुआ- एक काम करो तुम अपनी जंघा पर थोडा चीरा लगा लो. उसके बाद तुम इन मोतियों  को अन्दर रख कर वापस पट्टी बाँध लो.
यश- ठीक है , दोस्त.
फिर यशवर्धन ने अपनी जंघा पर छोटा सा चीरा लगा लिया. थोडा बहुत रक्त भी बहा लेकिन उसे कैसे भी करके उस ठग परिवार से बचना था. उसके बाद उसने कछुए को अलविदा कहा. कछुए ने उसकी आगे की यात्रा के लिए शुभमंगल की कामना की. उसने इसके अतिरिक्त उसे यह भी बताया की अगर वह उस गाँव से सकुशल निकलने में कामयाब हो गया तो फिर आगे एक विशाल नगर आएगा जिसमे वह आसानी से रह पाएगा. वह कछुए की सभी बातों को गाँठ बाँध लेता है. बीच रास्ते में उसे अपने ब्राह्मण दोस्त का पहला कथन याद आता है जिसमे उसने कहा था की एक से भले दो. आज उसका वह कथन सिद्ध भी हो गया था. कछुए ने पहले उसे चीते से बचाया और फिर उसे मोती दिए और आगे की यात्रा के लिए जरुरी सुझाव भी दिए. वह  शीघ्र ही उस गाँव में प्रवेश कर जाता है. वह जैसे ही गाँव में प्रवेश करता है. एक भली सी शक्ल का बुढा इंसान उसे घर के बाहर चारपाई पर बैठा हुआ दिखाई देता है. वह यशवर्धन को जोर से आवाज देता है..
क्रमश..

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4 Comments

Dilawar Singh

15-Feb-2024 02:23 PM

अति सुन्दर सृजन 👌👌

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:08 PM

Good

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Miss Lipsa

30-Aug-2021 03:19 PM

Wah wah

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